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मेरा गाँव मेरा बचपन

Hello दोस्तों

आप लोग कैसे है ,उम्मीद है आप ठीक होंगे ।आज हम बात करेंगे gaon की ।मैं Ara ज़िला की रहने वाली ही ।मुझे गाँव गये हुए बहुत टाइम हो गया है आज बालकनी मैं बैठे -बैठे गाँव की याद आ गई।हम अपनी दिनचर्या में इतने व्यस्त हो गये है कि किसी भी चीज़ का Time नहीं है हम कितने ही modern क्यों ना हो जाये ,पर सुकून का एहसास तो गाँव में ही होता है ।

मैंने अपने बचपन के 7 साल गाँव में बिताये है ,मुझे अपना बचपन बहुत अच्छे से याद है ।उस समय गाँव का माहोल कुछ अलग था ।हमारी family बहुत बड़ी फ़ैमिली है,घर का माहौल भरा- भरा रहता था ।शहर में बच्चो को टाइम से हर चीज़ दिया जाता है चाहे खाना हो या कुछ भी ,हम जब छोटे थे इतना tension नहीं होता था ना ही कोई time table जब भूक लगी खाना खा लिए ,फिर खेलने चले गये ,शाम के time लालटेन के आगे सब अपनी कॉपी क़िताब लेकर बैठ जाते थे ।फिर खाना खा के 8 बजे तक सो जाते थे और सुबह 6 बजे उठ कर नहा धोकर 7 बजे तक नाश्ता करके स्कूल के लिए निकले जाते ।

अब गाँव भी पहले जैसे नहीं था ,हमारे जैसे gaon के बहुत लोग काम के सिलसिले में शहर में अपनी एक अलग दुनिया बसाने को मजबूर हुएँ ,अब यही हमारी जीवन शैली हो गई है अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक सुकून को हमने गिरवी रख दिया ।

अब माहौल अलग हो चुका है ,बस अपने बचपन की यादों को याद करके खुश हो जाते है ,जो भी हो बचपन तो मैंने जिया है अपना खूब खेला,ना कोई tension बस अपनी दुनिया में मस्त, तभी आज जब भी याद करती ही अपने बचपन को तो होटों पर मुस्कुराहट आ जाती है ।

भारत की आत्मा गाँवों में बस्ती है ,आधुनिक जीवन में कहीं ना कहीं

हमने अपने गाँव को खो दिया ।

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